अतीत के सपने
होते हैं भावात्मक ,
तो कभी मर्मस्पर्शी , शांत
तो कभी उच्छ्श्रिङ्खल ।
पर अक्सर ,
विचारो से ओत-प्रोत ।
गौर करो ,
कि क्या तुम्हारे विचार !
क्या वही नहीं हैं,
जो वर्षों पहले थे ।
विचारो पर अब भी पैबंद है
और तब भी थे ।
होते हैं भावात्मक ,
तो कभी मर्मस्पर्शी , शांत
तो कभी उच्छ्श्रिङ्खल ।
पर अक्सर ,
विचारो से ओत-प्रोत ।
भावनाओ के समंदर में,
किसी एक पर टिकना
कितना होता है मुश्किल ;
जैसे तेज़ धार में
रेत को मुटठी में पकड़ना ।
ये विचार है अतीत के
हमारे संस्कार के ,
गाँव - समाज के ,
सुख-दुःख के ,
खेतो में जुतने वाले बैलों के,
मुंडेर पे बैठे आज़ाद पंक्षियों के,
हाटों में टंगे कटे बकरे के,
और खरीददारों के झुण्ड के भी ।
गौर करो ,
कि क्या तुम्हारे विचार !
क्या वही नहीं हैं,
जो वर्षों पहले थे ।
विचारो पर अब भी पैबंद है
और तब भी थे ।
'संस्कार' से विचार था ;
अब विचारो से समझा जाता है
संस्कार को ।