हाँ , मैं ज़िंदा हूँ ॥
साँसें चल रही हैं, लहू बह रहा है
धमनियों में, लगातार।
शायद इसलिए,
मैं ज़िंदा हूँ ।
हाँ , मैं ज़िंदा हूँ ... ।।
पर एक दिन ,
रुकेगा ये अनवरत प्रवाह ,
धमनियों से लहू का।
उस दिन किसी की आँखों से बहेगा लहू ।
मेरे ना होने का सदमा होगा ।
मातम होगा बसंत में , कुछ क्षण की लिए ।
फिर,
सब हस्बेमामूल ।।
तो क्या,
मैं, फिर भी ज़िंदा रहूँगा ?
या, बेजान सी तस्वीर में हो जाऊंगा कैद ?
रुकेगा ये साँस भी ,
जिससे बू आती है रंजिश की ;
जिसमे महकते हैं फूल
सौहार्द्र और स्नेह का भी।
सत्य है यह अकाट्य , कि
आविर्भाव का है अंत ।
पर, ज़िंदा रहना अनंत ।।
कहीं ऐसा ना हो , कि
मेरे होने का एहसास
मेरी हड्डियों के गलने-खपने से मापा जाये ।
साँसें चल रही हैं, लहू बह रहा है
धमनियों में, लगातार।
शायद इसलिए,
मैं ज़िंदा हूँ ।
हाँ , मैं ज़िंदा हूँ ... ।।
पर एक दिन ,
रुकेगा ये अनवरत प्रवाह ,
धमनियों से लहू का।
उस दिन किसी की आँखों से बहेगा लहू ।
मेरे ना होने का सदमा होगा ।
मातम होगा बसंत में , कुछ क्षण की लिए ।
फिर,
सब हस्बेमामूल ।।
तो क्या,
मैं, फिर भी ज़िंदा रहूँगा ?
या, बेजान सी तस्वीर में हो जाऊंगा कैद ?
रुकेगा ये साँस भी ,
जिससे बू आती है रंजिश की ;
जिसमे महकते हैं फूल
सौहार्द्र और स्नेह का भी।
सत्य है यह अकाट्य , कि
आविर्भाव का है अंत ।
पर, ज़िंदा रहना अनंत ।।
कहीं ऐसा ना हो , कि
मेरे होने का एहसास
मेरी हड्डियों के गलने-खपने से मापा जाये ।