हरी पगडंडियों पर
नंगे पाँव
घास पर पड़े , ओस
की बूंदों को समेटकर
ऊपर छिड़कना ,
और जिस्म गीला
शायद ! तुम्हारा ही था ।
अमावाश की रातो में
चाँद की प्रतीक्षा ,शायाद
तुम्हारे लिए ही था
बादलों को एकटक निहारना ,
की तुम हो शायद !
तितलियों के पीछे
शोर करते हुए भागना
की , शायद
तुम मिल जाओ !
फूलों पर से
मधुमक्खियों के झुण्ड
को उडाना ,
मुझे लगता की
तुम वही पर हो !
बेचैनी और उल्लास
के समागम में
खँडहर के पीछे
शायद , तुम्हारा ही इंतजार था
बादल संघनित होने लगे
पंछी लौट आए हैं
तुम्हारा पता नही ...
: चंदन
maasha allah maan gaya bhai toh sach mai shaayar ho gaya hai ....
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