अनजाना नहीं है ,मेरे लिए
अब ये शहर।
बहुत दिनों से रहता आ रहा हूँ ;
फिर भी ना जाने क्यों ,
महसूस करता हू तन्हा -तन्हा।
अपने आप से ही बाते करता हूँ।
और ऐसे ही करते है
सरे जन।
कोई बोलना नहीं चाहता
तो, कोई बोल नहीं पता।
सबको अपने की पड़ी है;
रमे है लोग ,
चिंता व चिंतन के
सम्मिश्रण में।
वो पकी हुयी दाढ़ियो को
हीरो कट लुक दिए,
टेम्पोवाला !
विस्मय भरी नजरो से ,
भिकाजी कामा प्लेस पे
निहारते है, आवाज़ लगाते है ;
बड़ी बड़ी इमारतों के बीच ,
बड़ी-बड़ी उम्मीदें लिए।
आखिर सूरज निकला ,
सवेरा कर गया ,एक तीस वर्षीय
सरदार जी ने।
गन्तव्य को पहुचने ,
खड़ -खड़ के साथ टेम्पो स्टार्ट हुयी ,
आँखों से ओझल।
अब उसी जगह दूसरा
टेम्पोवाला ……….. ॥
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