अक्सर करता है दिल
गाने को , गुनगुनाने को
गीत समृद्धि का,
गीत ख़ुशी का ,
गीत उत्थान का , कल्याण का
पूर्णता का परिपक्वता का
गीत प्यार का , सौहार्द्र का
गीत आदमियत के, एहसास का
मानवता के आभास का
पर ,
गा नहीं पाते ।
पता नहीं क्यूँ
कुछ रोकता है,
कोई रोकता है ,
और हम ठहर जाते है ।
फिर लोग कहते हैं
मरा , बेजान
मुँह मोड़ते हैं वही
जिसके कारण गा ना पाया । ।
इसलिए
उठो, गाओ गीत
ज़िन्दगी का
ख़ुशी का
ग़म तो मात्र दिमागी फितरत है ॥
गाने का कोई समय नहीं , नहीं कोई स्थान ।
गाते रहो मिलेगी पहचान ॥
इसलिए हे पथिक ,
इतिहास के पन्नों में 'जी कर मरना '
मर कर जीने से इतिहास नहीं बनता ॥