Man Ki Baat

कवि जब "भावनाओ के प्रसव" से गुजरते है तो कविताएँ प्रस्फूटित होते है। शुक्लजी कहते हैं कविता से मनुष्य-भाव की रक्षा होती है और इसे जीवन की अनुभूति कहा। प्रसाद जी ने सत्य की अनुभूति को ही कविता माना है। कविता वह साधन है जिसके द्वारा सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक संबंध की रक्षा और निर्वाह होता है। कविता का सीधा सम्बन्ध हृदय से है। यथार्थवादी, प्राकृत्रिक-सौंदर्य और जीवन-दर्शन की झलकें लिए कुछ मर्मस्पर्शी कविताएँ चंदन गुंजन की कलम से । मेरी दूसरी ब्लॉग पढें The Cynical Mind

गुरुवार, 8 सितंबर 2016

मैं ज़िंदा हूँ !

हाँ , मैं ज़िंदा हूँ ॥

साँसें  चल रही हैं, लहू बह रहा है
धमनियों में, लगातार।
शायद इसलिए,
मैं ज़िंदा हूँ ।  
                           हाँ , मैं ज़िंदा हूँ ...  ।।

पर एक दिन ,
रुकेगा ये अनवरत प्रवाह ,
धमनियों से लहू का।
उस दिन किसी की आँखों से बहेगा लहू  ।
मेरे  ना   होने  का   सदमा होगा  ।
मातम होगा बसंत में , कुछ क्षण की लिए  ।
फिर,
सब  हस्बेमामूल   ।।


तो क्या,
 मैं,     फिर भी ज़िंदा रहूँगा ?
या,  बेजान सी  तस्वीर में हो जाऊंगा कैद ?

रुकेगा ये साँस भी ,
जिससे बू आती है रंजिश की ;
जिसमे  महकते हैं फूल
सौहार्द्र और स्नेह का भी।

सत्य है यह अकाट्य , कि
आविर्भाव का है अंत   
पर, ज़िंदा रहना अनंत  ।।

कहीं ऐसा ना  हो , कि

मेरे होने का एहसास 
मेरी  हड्डियों के गलने-खपने से  मापा  जाये  

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