Man Ki Baat

कवि जब "भावनाओ के प्रसव" से गुजरते है तो कविताएँ प्रस्फूटित होते है। शुक्लजी कहते हैं कविता से मनुष्य-भाव की रक्षा होती है और इसे जीवन की अनुभूति कहा। प्रसाद जी ने सत्य की अनुभूति को ही कविता माना है। कविता वह साधन है जिसके द्वारा सृष्टि के साथ मनुष्य के रागात्मक संबंध की रक्षा और निर्वाह होता है। कविता का सीधा सम्बन्ध हृदय से है। यथार्थवादी, प्राकृत्रिक-सौंदर्य और जीवन-दर्शन की झलकें लिए कुछ मर्मस्पर्शी कविताएँ चंदन गुंजन की कलम से । मेरी दूसरी ब्लॉग पढें The Cynical Mind

शनिवार, 30 अक्टूबर 2010

हंसी

तुमने कभी देखा है ?
हंसी को ,
रोते हुए ;
कहोगे तुम भी हंसकर -
कैसी बेवकूफी भरी बातें हैं,
भला हंसी भी कहीं रोती है ,
वो क्यूँ रोए
हंसी तो हंसी है ...
चहरे को जीवंत कर देती है
गर्म कर देती है
वातावरण को ।
हरियाली कर देती है
बंजर धरा को
हंसी लुटाती है
अपार खुशियाँ
खुशनुमा बनती है
ग़मगीन माहौल को
भला वो क्यों रोए ;
हंसी दूसरों को हसाती है ,
खिलखिलाकर।
लेकिन क्या , तुमने
कभी देखा !
कभी महसूस किया
उस हंसी को ।
उस दर्द को
देखा तुमने ; उस
हंसी में
वो चीख पुकार
सुनाई दी ;
उस तनहा की 'विरह -गाथा '
पर , कभी ध्यान दिया
जिसने तुम्हें हंसाया ;
क्या तुमने , उन आंसुओं के बहते
पतले धार को देखा...
जब वो तुम्हें हंसा रहा था
टीम तो हंसने में मशगुल थे
हंसो , तुम्हें तो सिर्फ
हँसना ही है। खैर ,
गर वक़्त मिले
तो गौर से , दिल से
निरीक्षण करो
उन हंसी को
क्योंकि -
" हंसी भी रोते हैं !"

:- चन्दन कु गुंजन

शुक्रवार, 22 अक्टूबर 2010

मृत्यु

मृत्यु , नहीं पराजय है मानव की ,
अगर पराजय है तो उससे डरना ।
लड़ते रहना ही जीवन है ,
फिर क्या खोना क्या पाना ।।

हम मानव है प्यार के भूखे ,
प्यार सभी से करते है ।
जीवन से है हाथ मिलाया ,
मृत्यु को आलिंगन करते हैं ॥

बलशाली का चादर ओढ़े ,
प्रकृति को डराते हो ।
है हिम्मत तो रणभूमि में आ ,
कायर की भाँती चुपके से ,
दबे पाँव चले आते हो ।।

मेहनतकश मजदूर है हम ,
बंज़र को की हरियाली ही ।
जीत लिया है जीवन को ,
"मृत्यु " तेरी ही बारी है ॥

शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

शायद , तुम थी !

हरी पगडंडियों पर
नंगे पाँव
घास पर पड़े , ओस
की बूंदों को समेटकर
ऊपर छिड़कना ,
और जिस्म गीला
शायद ! तुम्हारा ही था ।

अमावाश की रातो में
चाँद की प्रतीक्षा ,शायाद
तुम्हारे लिए ही था
बादलों को एकटक निहारना ,
की तुम हो शायद !
तितलियों के पीछे
शोर करते हुए भागना
की , शायद
तुम मिल जाओ !
फूलों पर से
मधुमक्खियों के झुण्ड
को उडाना ,
मुझे लगता की
तुम वही पर हो !

बेचैनी और उल्लास
के समागम में
खँडहर के पीछे
शायद , तुम्हारा ही इंतजार था
बादल संघनित होने लगे
पंछी लौट आए हैं
तुम्हारा पता नही ...
: चंदन

बुधवार, 25 नवंबर 2009

१. रफ़्तार


रफ़्तार भरी कायनात में ,

सब अपने लक्ष्य को पाने को

सुरसा की भांति

मुंह बाए ,

की एक आसरा मिल जाए

अहर्निश परिश्रम कर ,

अपने आप से जद्दोजहद ;

एक अनोखी वास्तु की तलाश में

जो ख़ुद नही जानते

लूट - खसोट, कत्ले आम करते ,

नदी -नाले , पहारों को लांघते हुए ;

फ़िर भी हम वहीँ रह जाते ,

जहाँ से हमारा आविर्भाव हुआ

: चंदन